"गद्य कवीनां निकष वदन्ति'। हरिवंश राय बच्चन का गद्य अत्यन्त प्रभावकारी है। उनकी अपनी मौलिक विशेषता है। बच्चन जी के गद्य की रचना, वचन-प्रवीणता, वर्णन, समाख्यान आदि मार्मिक हैं। इनके गद्य में शब्द, उनकी वर्णव्यवस्था-संयोजना, प्रत्यय-उपसर्गीय नवरचना-शैली सायास नहीं हैं, साथ ही शब्दों, मुहावरों, सूक्तियों, सुभाषितों आदि के प्रयोग अनायास ही हुए हैं।
हरिवंशराय बच्चन ने अपनी सम्पूर्ण आत्मकथा चार खण्डों में लिखी है--
खंड-१ क्या भूलूँ क्या याद करूँ (१९६९ ई.)
खंड-२ नीड़ का निर्माण फिर (सन् १९७० ई.)
खंड-३ बसेरे से दूर (सन् १९७७ ई.)
खंड-४ 'दशद्वार' से 'सोपान' तक
(सन् १९५६ ई. से १९८५ ई. तक)
इनकी आत्मकथा के गद्य सूक्तियों और सुभाषितों से भरे पड़े हैं। मैंने केवल 'दशद्वार' से 'सोपान' तक की सूक्तियों और सुभाषितों का वर्णन प्रस्तुत किया है। इनके प्रयोग से बच्चन जी की आत्मकथा में रवानगी के साथ-साथ आकर्षण, प्रभावकता और रोचकता स्वयमेव आ गई है। वैसे भी बच्चन जी की वर्णन-शैली अत्यन्त मोहक है। आत्मकथा का कोई खण्ड प्रारम्भ करने के बाद उसे पूर्णतया समाप्त करने की प्रबल इच्छा स्वयं जाग्रत हो जाती है। आत्म-कथा के चौथे खण्ड 'दशद्वार' से 'सोपान' तक में अभिव्यक्त रोचक कथन- सूक्तियाँ, सुभाषितों आदि- (निम्नलिखित हैं)-